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कवक जगत की प्रमुख विशेषताएं ,वर्गीकरण,लक्षण और कवकों का आर्थिक महत्व बताइए

कवक जगत की प्रमुख विशेषताएं ,वर्गीकरण, लक्षण और कवक का आर्थिक महत्व बताइए  कवक क्या है  इन हिंदी ( kavak kya hota hai in hindi) 

कवक क्या है

कवक या फंगस ( fungi)  एक प्रकार का जीव है जो सड़ने वाले मृत कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करता है। 

जब कवक मृत पदार्थ से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, तो उन्हें मृतोपजीवी कवक कहा जाता है।

कवक का अध्ययन (kavak ka adhyayan) 

कवक का अध्ययन माइकोलॉजी विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है कवक की खोज का श्रेय ऑस्ट्रेलिया के भूविज्ञानी  बिगर रासमुसेन को जाता है।

आमतौर पर कवक कुछ बड़े होते हैं या कुछ बहुत छोटे होते हैं, इन्हें माइक्रोस्कोप से भी देखा जा सकता है और साधारण आंखों से भी देखा जा सकता है।

उदाहरण के लिए, हमें मशरूम को देखने के लिए माइक्रोस्कोप की आवश्यकता नहीं है जो एक कवक है

और हमें उसी खमीर को देखने के लिए एक माइक्रोस्कोप की आवश्यकता होती है जिससे brad बनाई जाती है। 

कवक को उनके रंग के आधार पर भी जाना जाता है जैसे कुछ कवक काले रंग के होते हैं 

कुछ पीले रंग के कुछ सफेद रंग के, और कुछ लाल रंग के,कुछ हरे रंग के, कवक होते हैं 

लेकिन देखा जाए तो उनकी विशेषता लगभग समान होती है अर्थात सभी कवक में ही प्रकार की विशेषता पाई जाती है हो सकता है 

कि कुछ कवक में थोड़ा बहुत अंतर हो लेकिन बहुत ही कम कवक में ऐसा होता है और ज्यादातर  कवक के लक्षण लगभग समान ही होते हैं

 कवक यूकेरियोटिक समूह का सदस्य है और इसका अध्ययन माइकोलॉजी विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है  मिट्टी पानी सभी जगह पर पाए जाते हैं 

इनका सबसे बड़ा फायदा यह है कि ये दुनिया में क्लीन्ज़र का काम करते हैं। दुनिया में सबसे बड़े अपमार्जक कवक और जीवाणु  है

कवको का वर्गीकरण  (classification of fungi in hindi)

शुरुवात मे इनको पौधों की श्रेणी में रखा गया था और इन्हें क्रिप्टोगेमि अर्थात बिना फूल वाले  नाम दिया बाद मे (cryptogame) को तीन भागो मे बांटा गया थैलोफाइटा ,ब्रायोफाइटा ,टेरिडोफाइटा 

कवक को थैलोफाइटा के अंतर्गत रखा गया और इसी वर्ग में कवक के साथ ही शैवाल और जीवाणु को भी रखा गया पौधों के अंतर्गत रखा गया था 

मगर बाद में अध्ययन की सुविधा के लिए इन्हें अलग वर्ग में रखा गया

 कवक जीवों का एक बड़ा समुदाय है जिसे आमतौर पर वनस्पतियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्ग के सदस्य क्लोरोफिल मुक्त होते हैं kavak मे क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है 

नींबू से दाद का इलाज

 कवक में जनन 

कवक में जनन मुख्यतः अलैंगिक विधि  अर्थात खंडन या विखंडन के द्वारा होता है और बीजाणुओं द्वारा प्रजनन करते हैं।

कवक कब अंकुरित होते हैं

जैसा कि हमने पहले बताया है कवक अलैंगिक प्रजनन के द्वारा जनन करते हैं और इसलिए कवक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सुरक्षित रहते हैं और सामान्य परिस्थितियों में कवक अंकुरित होते हैं 

इसी कारण कवक से होने वाली बीमारी जल्दी से ठीक नहीं होती  यह कवक कि महत्वपूर्ण विशेषता होती हैं

 ऐसा उस में पाई जाने कोशिका भित्ति काइटिन के कारण होता है

 कवक के लक्षण (kavak ke lakshan)

ये सभी थैलोइड पौधे हैं शरीर के ऊतकों में अंतर नहीं करते हैं जड़ें, तना और पत्तियां नहीं होती हैं और उनके पास अधिक प्रगतिशील पौधों की तरह संवहनी प्रणाली नहीं होती है इसमें जाइलम व फलोएम का अभाव होता है 

ऐसे सभी जीवों को कवक के एक ही वर्ग के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है।

कवक की प्रजातियों की  लगभग हजारों में इनकी संख्या होती 

 हवा में और अन्य जीवों के शरीर के अंदर या ऊपर भी पाए जाते हैं। वास्तव में, कवक दुनिया के सभी स्थानों में उत्पन्न हो सकते हैं जहां वे कार्बनिक यौगिक पा सकते हैं। क्योंकि कार्बनिक योगिक के सही में अपना भोजन प्राप्त करते हैं

कुछ कवक लाइकेन के निर्माण में भाग लेते हैं जो कठोर चट्टानों पर, शुष्क स्थानों पर और पर्याप्त उच्च तापमान पर उगते हैं 

जहाँ कोई अन्य जीव सामान्य रूप से नहीं रह सकता है। लाइकेन कवक  और शैवाल से मिलकर बने होते हैं  प्रदूषण के संकेत के रूप में उपयुक्त होते हैं जहां पर तो उसमें ज्यादा. प्रदूषण  होता है वहां पर liken लेकिन नहीं होते

कुछ एककोशिकीय प्रजातियों को छोड़कर, जैसे खमीर, अन्य सभी प्रजातियों का शरीर बहुकोशिकीय होता है, जो सूक्ष्म तंतुओं से बना होता है 

और जिससे प्रत्येक दिशा में अनेक शाखाएँ ऊपर या भीतर फैली होती हैं।

सेल्युलोज या एक विशेष प्रकार  कार्बोहाइड्रेट होता है जो कोशिका भित्ति के निर्माण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होता हैैै।कवकों कि कोशिका भित्ति में कार्बनिक पदार्थ भी पाए जाते हैं।

कवक में साइटोप्लाज्म और अन्य पदार्थ मौजूद होते हैं, उदाहरण के लिए कैल्शियम ऑक्सालेट, रवा, प्रोटीन कण, आदि। प्रत्येक प्रजाति में प्रोटोप्लास्ट क्लोरोप्लास्ट से रहित होता है। 

यद्यपि कोशिकाओं में स्टार्च की कमी होती है, एक अन्य जटिल पॉलीसेकेराइड ग्लाइकोजन पाया जाता है।

पर्णहरिम की अनुपस्थिति के कारण, कवक कार्बन डाइऑक्साइड और पानी से कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करने में असमर्थ हैं। 

इसलिए, अपने खाद्य पदार्थों को प्राप्त करने के लिए, वे अन्य पौधों, जानवरों और उनके शवों पर ही निर्भर रहते हैं।

 उनकी जीवन शैली और संरचना इसी पर निर्भर करती है। यद्यपि कवक कार्बन डाइऑक्साइड से चीनी बनाने में पूरी तरह से अक्षम हैं, 

वे सरल घुलनशील शर्करा से जटिल कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण करते हैं, जो उनकी कोशिका भित्ति बनाते हैं। 

 काबोर्हाइड्रेट व वसा के रूप  में संचित रहता है कवक की कोशिका भित्ति काइटिन की बनी होती है

यदि उन्हें सरल कार्बोहाइड्रेट और नाइट्रोजनयुक्त यौगिक दिए जाएं, तो कवक उनसे प्रोटीन और अंततः (प्रोटोप्लाज्म) बना सकते हैं।

 कवक या तो कार्बनिक पदार्थ, उत्सर्जन सामग्री या मृत ऊतक के विश्लेषण से भोजन प्राप्त करते हैं।

 कवक परजीवी के रूप में जीवित कोशिकाओं पर निर्भर होते हैं। एक सहजीवन के रूप में, वे किसी अन्य जीव के साथ अपना संबंध स्थापित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दोनों को इस मित्रता का लाभ मिलता है। 

विभिन्न कवकों को विभिन्न खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। कुछ कवक सर्वाहारी होते हैं और अपना भोजन किसी भी कार्बनिक पदार्थ, जैसे एस्परगिलस और पेनिसिलियम से प्राप्त कर सकते हैं।

 अन्य कवक अपने आहार के लिए विशेष रूप से प्रतिकूल हैं। 

कुछ हमेशा परजीवी के पोषण के लिए न केवल जीवित प्रोटोप्लाज्म, बल्कि एक विशेष प्रजाति के आधार की भी आवश्यकता होती है।

सैप्रोफाइट्स कवक  संपर्क में आकर अपने तंतुओं की दीवार से विसरण द्वारा अपना भोजन प्राप्त करते हैं। 

परजीवी को अपना भोजन कोशिकाओं के जीवित प्रोटोप्लाज्म से ही मिलता है, 

कवक परजीवी जीवन जीते हैं लेकिन कभी-कभी अपना भोजन मृत रूप से प्राप्त करते हैं। 

कवक का आर्थिक महत्व, लाभ (kavak ka aarthik mahatv)

कवक की बात करें तो आजकल  हमारे जीवन में बहुत सारे लाभ हैं 

 सैकरोमाइसेस

सैकरोमासैस कवक का प्रयोग डबलरोटी के निर्माण में किया जाता है।

खमीर या यीस्ट

कवको मे एक बहुत महत्वपूर्ण  कवक है। यीस्ट या खमीर  यह ब्रेड बनाने मे काम आता है और इसी के किण्वन द्वारा शराब तैयार की जाती है।   आदि चीजें बनाई जाती हैं 

मशरूम 
कवक जगत की प्रमुख विशेषताएं ,वर्गीकरण,लक्षण और कवकों का आर्थिक महत्व बताइए

मशरुम का प्रयोग खाने में किया जाता है। मशरूम को सांप की छतरी भी कहा जाता है।  आजकल मशरूम की बहुत ज्यादा पैमाने पर खेती होती है 

और इसमें लगभग बहुत सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं और यह एक हेल्थी फ़ूड माना जाता है 

मशरूम की ही तरह अगैरिकस और मार्सेला का भी भोजन में उपयोग किया जाता है।

ट्राइकोडर्मा का उपयोग

ट्राइकोडर्मा भी एक प्रकार का कवक होता है
इसका प्रयोग किसान अपने खेतों में करते हैं। इसका दो तरीके से उपयोग किया जाता है 

एक तो स्प्रे की तरह घोल बनाकर  और दूसरा बीज को उपचारित करके बहुत सी सब्जियों में किया जाता है इसे आलू टमाटर, बैंगन ,आदि फसलों मैं  प्रयोग किया जाता है  

इसका प्रयोग करने से फसलों में अनावश्यक फफूंद के द्वारा होने वाली बीमारी नहीं लगती 

विभिन्न प्रकार केे एंटीबायोटिक्स 

पेनिसिलिन , क्लोरोमायसेटिन, स्टेपटोमाइसीन, 

अरगोटीन  बहुत ही अच्छे एंटीबायोटिक दवा है जो  प्रसव के समय महिला के बच्चा  पैदा होने के समय को कम करने के लिए दी जाती है।

पौधों की वृद्धि में विशेष महत्व रखने वाला हार्मोन जिबरेलिन भी कवक से ही प्राप्त होता हैै।

कवक से मिलने वाली पेनिसिलिन  सबसे पहली एक एंटीबायोटिक दवा है इसकी खोज अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1928 में की थी इसकी खोज से चिकित्सा के क्षेत्र में जैसे क्रांति आ गई हैै।

 कवक से होने वाले रोग (kavak se hone wale Rog) 

 कवक हमारे लिए किस प्रकार हानिकारक है अब हम इस बारे में थोड़ा जानते हैं मनुष्य में मुख्यतः एलर्जी  दाद-खाज, खुजली एथलीट फुट ,एग्जिमा  गजांपन ,दमा आदि रोग उत्पन्न करता हैै।  

एक ओर जहां कवक के बहुत सारे फायदे हैं वहीं इसके बहुत सारे नुकसान भी है 

यह पौधों, मनुष्यों, और जानवरो,में बहुत सारे  रोग उत्पन्न करता हैै।कवक से पौधों में बहुत सारे रोग होते हैं 

जैसे की सरसों का सफेद रेस्ट(rust) रोग और मूंगफली का टिक्का रोग एक महत्वपूर्ण रोग है। कवक गेहूंं में  स्मट रोग उत्पन्न करता है। 

गन्नेे का लाल अपक्षय रोग (red rot of sugarcane) आलू का पछेती अगंमारी रोग  (late blight of potato) कुछ मुख्य रोग है 

कवक व शैवाल का सहजीवी संबंध क्या कहलाता है

लाइकेन कहलाता है

डेली कंरट अफेयर 2022-2023 इन हिंदी 

म्यूकर या म्यूकोर कवक क्या है

 म्यूकोर, या म्यूकर कवक सड़े गले पर  बासी रोटी डबल रोटी पर पाया जाता है और यह भोजन या कच्ची सब्जियों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता हैं

 ऐसा नहीं कि कवक पहले नहीं था यह पहले भी था और अब भी है 

 कोरोनावायरस दौरान कुछ लोगों की इम्युनिटी बहुत ज्यादा कमजोर होने के कारण उन्हें यह फंगस हो गया और जिससे ब्लैक फंगस की बीमारी सामने आई

ब्लैक फंगस या म्यूकर माइक्रोसिस  इंफेक्शन नाम कोरोनावायरस के  दौरान काफी चर्चा में रहा जहां एक और लोग कोरोनावायरस  से प्रभावित थे 

वहीं दूसरी ओर ब्लैक फंगस ने भी लोगों को काफी मुश्किल में डाला। कुछ लोगों ने ब्लैक फंगस की बीमारी को 

करोनावायरस का ही रूप मान लिया मगर यह सच नहीं था यह बीमारी अलग थी.कोरोनावायरस की बीमारी एक वायरल इंफेक्शन था जब कि ब्लैक फंगस एक फंगल इंफेक्शन था

ब्लैक फंगस महामारी इतनी ज्यादा खतरनाक बीमारी नहीं थी मगर  स्थिति को देखते हुए यह बीमारी एक भयानक रूप से सामने आई और लोगों को काफी मुश्किलें हुई । 

वैसे तो फंगल संक्रमण के द्वारा मनुष्य को और भी बीमारी होती है जैसे दाद और वह त्वचा से संबंधित होती है मगर यह बीमारी थोड़ी कुछ अलग थी इसलिए इसको थोड़ा पहचानने में समस्या हुई

क्योंकि सभी अस्पताल कोविड-19 मरीजों से भरे हुए थे और ऐसे में ब्लैक फंगस ने आकर सभी को और परेशानी में डाल दिया तो 

आज हम जानेंगे कि ब्लैक फंगस यह बीमारी क्या थी और इससे कैसे बचा जा सकता है।

Black fungal infection symptom

ब्लैक संकट के दौरान मरीजों में जो लक्षण सामने आए उनके आधार पर इसकी पुष्टि हुई इसके लक्षण मुख्यतः 

आंखों का लाल हो जाना 

आंखों से पानी बहना 

आंखों का शूज जाना

 सिर में दर्द होना

 उल्टी होना

मस्तिक का प्रभावित होना

 इस तरह के कुछ मुख्य लक्षण सामने आए जिनसे देख कर कहा जाने लगा कि यह ब्लैक फंगस के लक्षण है

मगर एक बात यहां पर गौर करने वाली है यह बीमारी मुख्यता उन्हीं लोगों को हुई जिनके इम्यूनिटी कमजोर थी अर्थात जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कोराना महामारी के दौरान बहुत ज्यादा कम हो गई

जो लोग डायबिटीज के मरीज थे उन लोगों में यह बीमारी सबसे ज्यादा देखने को मिली क्योंकि डायबिटीज मरीजों की इम्युनिटी बहुत ज्यादा कमजोर होती हैं उन्हें ब्लैक फंगस ने ज्यादा से ज्यादा  प्रभावित किया 

जो लोग अपने किसी और बीमारी के इलाज में एंटीबायोटिक दवा का बहुत ज्यादा यूज कर रहे थे और काफी दिन से यूज कर रहे थे उन लोगों में विभिन्न ब्लैक फंगल की बीमारी देखने को मिली

black fungal infection treament 

ब्लैक फंगल इन्फेक्शन से बचाव के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट एक अच्छा और कारगर उपाय साबित हुआ आयुर्वेद में मुख्यता खानपन को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है और यह बीमारी खानपान के साथ बहुत गहरा संबंध है 

अगर आयुर्वेद के अनुसार खाना-पीना किया जाए तो यह बीमारी कुछ हद तक अपने आप ही ठीक हो जाती है 

क्योंकि अगर इस बीमारी के दौरान जंक फूड ज्यादा मिर्च मसाले वाले भोजन फसाए युक्त खाने से अगर बचा जाए तो यह बीमारी कुछ हद तक कंट्रोल में हो जाती है

 यह बीमारी एक फंगल के कारण हुई और फंगस हमेशा कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को चपेट में लेता 

 इसलिए जरूरी था के सबसे पहले प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाए और डायबिटीज के मरीजों को शुगर कम स्टेरॉयड कम दी जाए क्योंकि एस्ट्रॉयड शरीर में खून के लेवल में ग्लूकोज की मात्रा अर्थात कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को बढ़ा देता है 

जिससे फंगस कार्बोहाइड्रेट को गुलकोज को अपना भोजन की प्राप्ति कर लेता है और अपनी वृद्धि करता है 


जिससे फंगल इन्फेक्शन की समस्या और ज्यादा बढ़ जाती है इसलिए शुगर लेवल को कंट्रोल करें और इम्युनिटी पावर को को बढ़ाएं और अपने डॉक्टर से परामर्श ले और उनकी बताई गई दवाई को खाएं  यही इसका एक सफल इलाज है 

क्योंकि करोना भले ही चला गया हो मगर फंगस जब भी कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोग उसके संपर्क में आएंगे उनको बीमार करता रहेगा

उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी

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